एक बार मेरे एक बड़ी मूँछ वाले मित्र ने मुझसे पूछा, "क्या तुम्हारे पास चमड़े के सिक्के हैं". मैने अपनी अनभिंग्यता व्यक्त की. फिर उसने तुगलक की कहानी सुनाई. मैने कहा हाँ पढ़ा है, देखा नहीं है. उसने फिर कहा "अंग्रेज भी कम नहीं थे". मैने पूछा क्यों. कल बताऊँगा कह मुछड़ चलता बना. दूसरे दिन वह मेरे पास आया और एक डिबिया निकाली. डिबिये के अंदर से तीन गोल सिक्के नुमा वस्तु निकाली और मेरे हाथ रख कर कहा लो यह तुम्हारे लिए है. मैने उन्हें गौर से देखा. वे कार्डबोर्ड के बने थे. हूबहू अँग्रेज़ों के जमाने के सिक्कों के जैसे ही दिख भी रहे थे. एक अठन्नी, एक चवन्नि और एक एक पैसा.
अठन्नी और चवन्नि रुपहले थे तो एक पैसा ताम्र वर्ण का. अग्र भाग पर एड्वर्ड सप्तम बाईं ओर मुहँ किए हुए दर्शाया गया था. राजा के नाम की जगह गोलाई में "लॉंगमॅन्स इंडियन टोकन काय्न्स"अंकित था. नीचे की ओर "जर्मनी में बना" का उल्लेख भी था. पृष्ट भाग पर फूलों का बेल, राजमुकुट, मुद्रा का मूल्य एवं वर्ष १९११ अंकित किया गया था.
मैने थोड़ी छानबीन की तो पता चला क़ि एड्वर्ड सप्तम तो सन १९१० में ही स्वर्ग वासी हो गये थे. अलबत्ता १९११ में जॉर्ज पंचम क़ी ताजपोशी नई दिल्ली में हुई थी. ऐसी कौन सी घटना थी जिससे प्रेरित होकर एक ब्रिटिश कंपनी के द्वारा ऐसी मुद्राएँ (टोकन) निर्मित कराई गयीं. मैने सोचा, संभव है क़ि बाज़ार में धातुओं की कमी के कारण चिलहर की किल्लत रही हो. द्वितीय विश्व युद्ध के समय ऐसी स्थिति निर्मित हुई थी. परंतु प्रथम विश्व युद्ध का प्रारंभ तो अगस्त १९१४ में जाकर ही हुआ था. मैं बड़ी दुविधा में पड़ गया और अब भी हूँ. क्या इनका निर्माण बच्चों के खेलने के लिए हुआ था. यह मानने को मन नहीं करता क्योंकि व्यापार वाले खेल में नकली नोटों का या फिर अंक लिखे बिल्लों का प्रचलन मैने देखा है. ये जो सिक्के (टोकन) जिनकी चर्चा हो रही है, पुराने हैं. कई हाथों से गुज़रे होंगे. क्षरण साफ दिखता है.
मैने भारतीय रिज़र्व बॅंक के मौद्रिक संग्रहालय एवं इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ रिसर्च इन नूमिसमॅटिक स्टडीस (IIRNS) से भी संपर्क कर सहायता माँगी पर उन्हे ऐसे टोकन्स क़ी कोई जानकारी नहीं थी. अंततोगत्वा मैने ब्रिटिश म्यूज़ीयम से पूछा. उनका कहना है क़ि ए टोकन सिक्के भारतीय उपनिवेश के मुद्रा के रूप में प्रचलित नहीं किए गये थे (सरकारी तौर पर). ये बच्चों के खेलने के लिए या फिर संग्रहकर्ताओं के लिए "अनुकृति" मात्र हैं. दोनों ही स्थितियों में भारत के बजाए ग्रेट ब्रिटन में प्रयोग (प्रचलन) हेतु इन्हे जारी किया गया होगा. संभवतः लोंगमेन एक ब्रिटिश कंपनी रही होगी और उन्होने दूसरे सिरीज़ (भारत के अतिरिक्त) के टोकन सिक्के भी जारी किए होंगे. उनका यह भी कहना था क़ि इन टोकेनों में जॉर्ज पंचम वाले सिक्कों क़ी नकल क़ी गयी है (जबकि हमने उन्हे टोपी पहने ही सिक्कों पर देखा है).
बहरहाल मेरी दुविधा जस क़ी तस है. मेरी समस्या यह है क़ी मैं जान ही नहीं पा रहा हूँ कि मैं और क्या जानना चाहता हूँ. यदि पाठकों में से किसी को भी कुछ भी पता हो तो निःसंकोच अवगत करा दें. टोकनों के छाया चित्र नीचे दिए जा रहे हैं.
अठन्नी और चवन्नि रुपहले थे तो एक पैसा ताम्र वर्ण का. अग्र भाग पर एड्वर्ड सप्तम बाईं ओर मुहँ किए हुए दर्शाया गया था. राजा के नाम की जगह गोलाई में "लॉंगमॅन्स इंडियन टोकन काय्न्स"अंकित था. नीचे की ओर "जर्मनी में बना" का उल्लेख भी था. पृष्ट भाग पर फूलों का बेल, राजमुकुट, मुद्रा का मूल्य एवं वर्ष १९११ अंकित किया गया था.
मैने थोड़ी छानबीन की तो पता चला क़ि एड्वर्ड सप्तम तो सन १९१० में ही स्वर्ग वासी हो गये थे. अलबत्ता १९११ में जॉर्ज पंचम क़ी ताजपोशी नई दिल्ली में हुई थी. ऐसी कौन सी घटना थी जिससे प्रेरित होकर एक ब्रिटिश कंपनी के द्वारा ऐसी मुद्राएँ (टोकन) निर्मित कराई गयीं. मैने सोचा, संभव है क़ि बाज़ार में धातुओं की कमी के कारण चिलहर की किल्लत रही हो. द्वितीय विश्व युद्ध के समय ऐसी स्थिति निर्मित हुई थी. परंतु प्रथम विश्व युद्ध का प्रारंभ तो अगस्त १९१४ में जाकर ही हुआ था. मैं बड़ी दुविधा में पड़ गया और अब भी हूँ. क्या इनका निर्माण बच्चों के खेलने के लिए हुआ था. यह मानने को मन नहीं करता क्योंकि व्यापार वाले खेल में नकली नोटों का या फिर अंक लिखे बिल्लों का प्रचलन मैने देखा है. ये जो सिक्के (टोकन) जिनकी चर्चा हो रही है, पुराने हैं. कई हाथों से गुज़रे होंगे. क्षरण साफ दिखता है.
मैने भारतीय रिज़र्व बॅंक के मौद्रिक संग्रहालय एवं इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ रिसर्च इन नूमिसमॅटिक स्टडीस (IIRNS) से भी संपर्क कर सहायता माँगी पर उन्हे ऐसे टोकन्स क़ी कोई जानकारी नहीं थी. अंततोगत्वा मैने ब्रिटिश म्यूज़ीयम से पूछा. उनका कहना है क़ि ए टोकन सिक्के भारतीय उपनिवेश के मुद्रा के रूप में प्रचलित नहीं किए गये थे (सरकारी तौर पर). ये बच्चों के खेलने के लिए या फिर संग्रहकर्ताओं के लिए "अनुकृति" मात्र हैं. दोनों ही स्थितियों में भारत के बजाए ग्रेट ब्रिटन में प्रयोग (प्रचलन) हेतु इन्हे जारी किया गया होगा. संभवतः लोंगमेन एक ब्रिटिश कंपनी रही होगी और उन्होने दूसरे सिरीज़ (भारत के अतिरिक्त) के टोकन सिक्के भी जारी किए होंगे. उनका यह भी कहना था क़ि इन टोकेनों में जॉर्ज पंचम वाले सिक्कों क़ी नकल क़ी गयी है (जबकि हमने उन्हे टोपी पहने ही सिक्कों पर देखा है).
बहरहाल मेरी दुविधा जस क़ी तस है. मेरी समस्या यह है क़ी मैं जान ही नहीं पा रहा हूँ कि मैं और क्या जानना चाहता हूँ. यदि पाठकों में से किसी को भी कुछ भी पता हो तो निःसंकोच अवगत करा दें. टोकनों के छाया चित्र नीचे दिए जा रहे हैं.
No comments:
Post a Comment